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गोस्वामी जी के गीतो में पर्यावरण प्रेम का सन्देश

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गोस्वामी जी के गीतो में पर्यावरण प्रेम का सन्देश

मित्रो 
स्व गोपाल बाबू गोस्वामी जी एक महान गायक एवं सन्गीतकार होने के साथ साथ समाज के प्रति बडा जागरुक थे। मैं यहां पर उनके द्वारा गाये और रचित गीतों के माध्यम से उनके पर्यावरण प्रेम के बारे में जानने व समझने का प्रयास करुंगा।
गोस्वामी जी को पहाड और पहाड़ के प्राकर्तिक स्वरूप से बड़ा प्यार था, उनके हर गीत में पहाड़ और उसका अंग प्रत्यंग एक नये रूप में उपस्थित होता है जैसे नीचे के गीत में गोस्वामी जी पहाड की हवा को गले लगने को कह रहे हैं, ये कुछ कुछ कालीदास के मेघदूत की याद दिलाता है, पर यहां सन्देशवाहक मेघ की जगह हवा है:-
ओ बयायी ऎ जा अन्ग्वायी ..............................................




इस गीत में देखिये कि किस प्रकार, उत्तराखण्ड व पहाड़ के पर्यावरण का जिक्र करते हुये गोस्वामी, जी लोगों से पहाड़ का ठण्डा पानी, फ़ल, फ़ूल और स्वस्थ हवा का आनन्द लेने को कह रहे हैं
पी जाओ पी जाओ मेरो पहाड़ को ठण्डो पानी..........................

ऎसे ही एक गीत में गोस्वामी जी ने ऊत्तराखण्ड प्रदेश की प्रमुख नदी काली (शारदा) के सौन्दर्य का बडा सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है:
काली गंगा को कालो पानी ...............................................


अब देखिये इस गीत में गोस्वामी जी प्रक्रति के सौन्दर्य से प्रभावित होकर अपने आप को मानव रूप की बजाय प्रक्रति के किस रूप में देख्नना चाह रहे हैं:
चल रूपा हिलांसै कि जोडी बनी जुंला ...................................


गोस्वामी जी पहाड़ और पर्यावरण प्रेमी तो थे ही जोकि उनके गीतों से स्पष्ट है पर साथ ही वह पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूक थे। जैसे नीचे के गीत में गोस्वामी जी बान्ज के जंगल को न काटने का सन्देश दे रहे हैं:-
सरकारी जंगल लछिमा बान्ज नी काट लछिमा बान्ज नी काटा..... 
इसी प्रकार इस गीत में गोस्वामी जी की पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुकता प्रदर्शित होती है:-
आज यौ मेरी सुन लो पुकारा, धाद लगौं छ यौ गोपाला................
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गोस्वामी जी पर्यावरण तथा उसमें हो रहे बद्लावों के प्रति समाज को सचेत करने का कार्य तभी शुरु कर चुके थे जब हमारी सरकार तथा समाज का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग सोया हुवा था। यहां पर मैंने गोस्वामी जी के पर्यावरण प्रेम से सम्बन्धित गीतो के बारे उल्लेख किया है, पर गोस्वामी जी का हर गीत कुछ न कुछ सन्देश अवश्य प्रदान करता है। आ़गे हम गोस्वामी जी के गीतों के माध्यम से पहाड़ी समाज के अन्य सरोकारों को भी जानने का प्रयास करेंगे।

एक महान कलाकार वही है जो अपनी कला के माध्यम से केवल समाज का मनोरन्जन ही ना करे बल्कि समाज के प्रति अपने अन्य दायित्वों को भी समझे तथा समाज को उसके प्रति अपनी कला के माध्यम से जागरूक करे। गोस्वामी जी ने जिस प्रकार एक बहुत ही साधारण जीवनशैली में जीवन निर्वाह करते हुये अपनी कला के माध्यम से पूरे समाज को मनोरन्जन के साथ साथ उनके सामाजिक उत्तर्दायित्वों का जो सन्देश दिया है वह उनको उत्तराखण्ड ही नही देश के महान कलाकरों की श्रेणी में रखता है।

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