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फूलदेई या फूलदेयी - कुमाऊँ अंचल का हैप्पी न्यू इयर

फूलदेयी का शाब्दिक अर्थ है दरवाजे पर या देहरी पर जिसे कुमाऊं में धेयी या देयी कहते हैं फ़ूल डालने से है और इस प्रकार इस त्यौहार के नाम में ही इसको मनाने का सारा विवरण समाया हुआ है। Pholldeyi is Kids festival of Indian New Year celebration in Kumaun region of Uttarakhand

फूलदेई या फूलदेयी


कुमाऊँ अंचल का हैप्पी न्यू इयर

उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं अंचल में हर माह की शुरूवात किसी त्यौहार से ही होती है, पर नये वर्ष का आगमन अपना विशेष महत्व रखता है। नये वर्ष का उत्सव तो शुक्ल पक्ष की प्रथमी(संवत्सर पड़ाव) से प्रारंभ होता है पर चैत्र मास की संक्रान्ति को अर्थात विक्रम संवत के हैप्पी न्यु इयर (विक्रम संवत के पहले दिन) के दिन जो त्यौहार मनाया जाता है जिसे फूलदेई,फूलदेयी या फ़ूलधेयी के नाम से जाना जाता है। कुमाऊं अंचल प्रकृति के संसाधनो से परिपूर्ण होने के कारण यहां के हर त्यौहार का प्रकृति से सम्बन्ध होना आश्चर्यजनक नही है या यह भी कहा जा सकता है कि शायद प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करते हुये ही इस अंचल के लोग सभी उत्सवों को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

फूलदेई या फूलदेयी का शाब्दिक अर्थ है दरवाजे पर या देहरी पर जिसे कुमाऊं में धेयी या देयी कहते हैं फ़ूल डालने से है और इस प्रकार इस त्यौहार के नाम में ही इसको मनाने का सारा विवरण समाया हुआ है। शायद नये वर्ष के आगमन पर उसके स्वागत में तथा परिवार के सदस्यों को शुभकामनाऎं देने के लिए ही घर के दरवाजे पर फूल डालने की परंपरा शुरु हुयी होगी। जैसे आजकल पाश्चात्य प्रभाव में हम किसी मेहमान को पुष्प्गुच्छ (बुके) देकर सम्मानित करते हैं उसी प्रकार इस दिन नये वर्ष के स्वागत में बच्चे अपने घरों में तथा गांव के लोगों को नये वर्ष की बधाई देते हुये उनके घरों की देहरी पर पुष्प अर्पित करते हैं। इस दिन नये वर्ष के स्वागत में घर की देहरी को लीप कर या साफ़ करके उस पर सुन्दर ऎपण (रंगोली की तरह की कुमाऊं की एक लोककला) देकर उसे सजाया जाता है। अब हर घर की देहरी फूलदेई के फूलों का ईन्तजार कर रही होती है।


फूलदेई की टोकरी - फोटो नेहा रावत

हम सब जानते हैं कि हर त्यौहार पर बच्चों में विशेष उत्साह रह्ता है पर फूलदेई तो एक तरह से बच्चों का ही उत्सव है जिस कारण इस दिन उनका उत्साह और अधिक हो जाता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां और छोटे लड़के भी सुबह-सुबह जल्दी उठकर स्नान करके फूल एकत्र करते हैं और भगवान की पूजा कर सबसे पहले अपने घर की देहरी पर फूल डालते हैं। फ़िर एक थाली या गावों में निंगाल (बांस/रिंगाल) की टोकरी को फ़ूलों से भरकर, टोली बनाकर निकल पड़ते है गांव/मुहल्ले के घर-घरों में देहरी पर फूल डालने। जिस घर की देहरी पर फूल डाले जाते हैं उस परिवार को शुभकामनाऎं देते हुये वे कुछ इस प्रकार गाते भी जाते हैं:-
फूल देई, छम्मा देई,
दैणी द्वार, भर भकार,
यौ देली सौ बार,
बारम्बार, नमस्कार,
फूले द्वार बारम्बार……
फूल देई-छ्म्मा देई।

जिस घर की देहरी पर बच्चे फूल डालते हैं उस परिवार के लोग बच्चों को चावल, गुड़ (कस्बों में आजकल टाफ़ियां/चाकलेट आदि भी दी जाती हैं) या पैसे आदि उपहार या धन्यवाद स्वरूप देते हैं। बच्चों द्वारा इकट्ठा किये गये चावल से शाम को घर में सेई नाम का व्यंजन बनाये जाने की भी परंपरा है। सेई चावल के आटे के हलवे की तरह का ही एक व्यंजन होता है जिसको निम्न प्रकार से बनाया जाता है:-

पहले चावल को ३-४ घण्टे पानी में भिगोके रखा जाता है फ़िर चावलों को पानी से निकालकर उनको सिलबट्टे पर पीसा जाता है। अब पिसे हुये चावलो को कढा़ई में घी या तेल डालकर भुना जाता है और फ़िर मीठे के लिए उसमें चीनी या गुड़ डाला जाता हैं और लो तैयार है गर्मा गर्म सेयी आपके खाने के लिए एकदम तैयार! सेई को घर के सदस्यों और आस पड़ोस में भी बांटा जाता है।


फूलदेई - फोटो अनिकेत चंद्रा

चैत मास में बसन्त की धूम रहती है और चारों तरफ़ फूल ही फूल खिले रहते हैं, जंगल में जहां फ़्यूली, प्योली और बुरांस की रंगत नजर आती है तो घरों पर आड़ू, प्लम, खुमानी, नाशपाती के पेड़ भी फूलों से रंगे नजर आते हैं किसी का रंग गुलाबी, किसी का लाल तो किसी पेड़ पर सफ़ेद फूलों की छटा बिखरी रह्ती है। वैसे तो कुमाऊं में हर त्यौहार पर धेयी या देहरी पर ऎपण बनाये जाते हैं पर फूलदेई के दिन इस पर छोटे छोटे बच्चे आकर फ़ूल डालते हैं तो उस दिन घर की देहरी की शोभा और भी बढ़ जाती है।

यह त्यौहार होली के आस पास कुछ दिन पहले या बाद में पड़ता है पर अब गायन का अंदाज बिल्कुल अलग हो जाता है होली के फाग की खुमारी अब धीरे-धीरे उतर रही होती है और नये साल के स्वागत में वे अब ऋतुरैंण और चैती गाने लगते हैं। पहाड़ी वाद्यों जैसे ढोल-दमाऊ बजाने वाले (जिनको स्थानीय भाषा में ढोली, बाजगी, बादी या औली आदि नामों से सम्बोधित किया जाता) इस दिन गांव के हर घर के आंगन में जाकर इन गीतों को गाते हैं। उपहार स्वरूप परिवार द्वारा उनको आटा, चावल, अन्य अनाज और दक्षिणा प्राप्त कर अपने घरों को आते हैं।

आज के दौर में त्यौहारों का स्वरूप धीरे या तो परिवर्तित हो रहा है या फ़िर वह केवल औपचारिकता मात्र रह गये हैं, फूलदेई में भी काफ़ी परिवर्तन आये हैं। आज के बच्चों में अब वह पहले वाला उत्साह नही रह गया है क्योंकि यही समय उनकी वार्षिक परीक्षाओं का भी होता है। आजकल की पढ़ाई ने बच्चों को ज्ञान प्रदान करने की बजाय अंक प्रतिशत और रैंक की अंधी दौड़ में धकेल दिया है। फ़िर भी किसी भी रूप में सही फूलदेयी का त्यौहार कुमाऊं अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी उत्साहपूर्वक मनाया जाता है और "फूल देई, छम्मा देई" गाते सजे धजे बच्चों की टोलियां कही न कही दिखायी ही पड़ जाती हैं।

फूलदेई जैसे त्यौहार एक ओर जहां हमारी वर्षों से चली आ रही परंपरा को आज भी जिन्दा रखे हुये हैं वही हमारे बच्चों को प्रकृति के और निकट लाने में भी सहायक हैं। इस तरह उनको अपने चारों ओर के पर्यावरण को और अधिक जानने का भी अवसर प्रदान होता है और उनके व्यवहारिक ज्ञान में भी बढ़ोतरी होती है। हमारी आशा है कि जब १ जनवरी को नये वर्ष के स्वागत में हम सैकड़ों बार हैप्पी न्यु ईयर का जाप करते है तो क्यों न भारतीय नववर्ष के मौके पर हमारे बच्चे "फूल देई, छम्मा देई" का उदघोष करते सुनायी दें और कुमाऊनी संस्कृति की इस विरासत को जिन्दा रखें।


फूल देई, छम्मा देई - कुमाऊँनी गीत
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4 टिप्पणियाँ

  1. फूल देई , छम्मा देई.... घर घर जै बेर !
    कतु याद आणि ऊ सब चीज़ जो छि पर नि छुन , या नि हवाल...
    के बच जाल यो ठटवनड़-भात ? पटाल(अ) बाज़ार? और ऊ गाल(इ) में ले प्यार. मैं चानू कि 'कुकुरी चेला' ले बच जाछी तो भल हुन.

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  2. jyosi ju,
    Bhote bhal lago ki tumul ek blog apni pahari ma, apni kumaon liji samarpit kari hai. miyar vicharal tum kathan paharm runchha. tumar bloge dagadi mi le pahareki hava khe lul.
    dwinu hathon jod kari pranam.
    Delhi me runi ek ranikhetok pahari
    D.C.Pandey

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  3. There is one more request. the slide show on your blog begins with a beautiful photo of "apen" . i will be greatful if you can provide me some photographs of such beautiful pahadi "apen" desings.my email is pandeydeep72@gmail.com

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  4. सुन्दर सारगर्भित लेख, अपनी संस्कृति,परंम्परा की जानकारी नयी पीढी के सामने रखनी चाहिए,परन्तु कुछ लोग इस पर भी शर्म करते है।

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