श्री हीरा सिंह राणा जी, प्रसिद्ध कुमाऊँनी गायक-२
(हीरा सिंह राणा जी की जीवन यात्रा के ७५ सुरीले वर्ष)
हीरा सिंह राणा जी बताते हैं कि वह 15 साल की उम्र से उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़कर गीत गाने लगा था। रामलीला, पारंपरिक लोक उत्सव, विवाहिक कार्यक्रम, आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ और देश-विदेश में खूब गाया। बच्चों को सिखाया भी। लेकिन उनका कहना है कि आज हमारे लोक संगीत की चिंता किसी को नही है, जो बहुत दुखद है। अगर हम अपनी लोक संस्कृति और लोक परंपराओं को नहीं बचायेंगे तो अपनी आंखों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को लुप्त होते हुए देखना पड़ेगा। निश्चित तौर पर हमारी लोकथाति के लिए यह गंभीर प्रश्न के साथ ही अपनी परंपरा को बचाए रखने का कौतूहल भी। जिसे जानना समझना और संरक्षित करना हम सबके लिए बहुत जरूरी है।
राणा जी के ७५ वें जन्म दिन पर प्रसिद्ध कुमाऊँनी साहित्यकार श्री पूरान चन्द्र कांडपाल जी ने कहा था:-
"आज 16 सितम्बर 2018 हैं सुप्रसिद्ध लोकगायक, गीतकार और कवि हीरा सिंह राणा ज्यू 75 वर्षक है गईं । पिछाड़ि 50 वर्ष बटि ऊँ हमरि मातृभाषा कुमाउनी कि सेवा में एक संत-फकीर कि चार निःस्वार्थ लागि रईं । उनर रचना संसार भौत ठुल छ। उनूल 9 रसों में देशप्रेम, श्रृंगार, प्रेरणादायी, विरह, भक्ति, उत्तराखंड और संदेशात्मक भौत गीत- कविता लेखीं । उनुहैं हम आपणि संस्कृति और भाषाक धरोहर लै कै सकनूं। राणा ज्यू आज जनमानस में छाई हुई एक महान विभूति छीं। उनर अमुक गीत भल छ अमुक गीत भौत भल छ , यैक विश्लेषण करण आसान न्हैति। उनु दगै कवि सम्मेलन में म्यर लै कएक ता दगड़ हौछ। ऊँ एक सरल, सहज, शांत और एक फ़कीर प्रवृति क मनखी छीं । राणा ज्यू कैं देखते ही जो गीत-कविता म्यार कानों में गूंजण फै जानीं ऊँ छीं। अहा रे जमाना, त्यर पहाड़ म्यर पहाड़, लस्का कमर बांदा, म्येरि मानिलै डानि, अणकसी छै तू, आजकल है रै ज्वाना, आ लिली बाकरी लिली आदि आंखरों कि माव बनै बेर गीत- कविता क रूप में हमार बीच में धरणी य सुरों क सम्राट कैं भौत भौत शुभकामना । उम्मीद छ राणा ज्यू अघिल हैं लै आपण रचनाओंल हमर साहित्य, संस्कृति और कला कैं सिंचित करते रौल।"
अक्टूबर २०१९ में दिल्ली सरकार ने उत्तराखंड की कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए एक अकादमी की स्थापना की है। दिल्ली सरकार ने लोकप्रिय गायक व कलाकार हीरा सिंह राणा को इस अकादमी का वाइस-चेयरमैन नियुक्त किया है। सरकार द्वारा जारी वक्तव्य में कहा गया है: “दिल्ली सरकार के कला, संस्कृति व भाषा विभाग द्वारा बुधवार को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अगुवाई में अकादमी स्थापित की गयी है जिसका उद्देश्य कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषाओं का प्रचार-प्रसार करना होगा। इस वक्तव्य में मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली सांस्कृतिक रूप से संपन्न नगर है जहाँ देश के विविध हिस्सों से आकर लोग रहते और काम करते हैं। यही विविधता दिल्ली के कॉस्मोपॉलिटन संस्कृति का निर्माण करती है।
दिल्ली में उत्तराखण्ड वासियों की बड़ी जनसंख्या रहती है और हम दिल्ली के लोगों को एक प्लेटफोर्म मुहैया करना चाहते हैं ताकि वे उत्तराखण्ड की कला और संस्कृति का आस्वादन कर सकें. मुझे खुशी है कि वाइस चेयरमैन हीरा सिंह राणा जैसे लोग आगे आये और हमें इस अकादमी को बनाने में सहयोग किया” सिसोदिया ने कहा। मनीष सिसोदिया दिल्ली सरकार के कला, संस्कृति व भाषा विभाग का काम भी देखते हैं। विभाग ने तय किया है कि यह नई अकादमी कुमाऊनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषाओं और संस्कृति के अच्छे कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक पुरस्कार भी शुरू करेगी। इस अकादमी के माध्यम से सरकार इन भाषाओं के कोर्स भी चलायेगी।
इस उत्साहजनक निर्णय से उत्तराखण्ड के निवासियों में बहुत प्रसन्नता है. उत्तराखण्ड सरकार के मुख्य सचिव रहे नृप सिंह नपलच्याल ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है:
“बधाई हो दिल्ली के समस्त उत्तराखंडियो को. पर इससे तो उत्तराखंड से पलायन को बढावा ही मिलेगा. पहले यहां से कामगार ही पलायन करते थे. अब दिल्ली सरकार के प्रोत्साहन से हमारे यहां के कवि,लेखक और साहित्यकार सब देश की राजधानी की ओर पलायन कर जायेंगे. जगाओ हमारे भाषा संस्थान को, जगाओ हमारे साहित्य अकादमी को. नहीं तो सरकार को शीघ्र ही एक साहित्यिक व बौद्धिक पलायन आयोग गठित करना पडेगा. इनके पलायन से तो उत्तराखंड जैसा हरा भरा राज्य भी एक साहित्यिक -बौद्धिक मरुस्थल में परिवर्तित हो जायेगा.”
रामनगर से शिक्षक नेता नवेंदु मठपाल ने लिखा है:
“अच्छी पहल. दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी भाषा अकादमी गठित की. उत्तराखंड में लंबे समय से मांग के बाद भी आज तक नहीं बनी लोक भाषा अकादमी. उत्तराखंडी लोक गायक हीरासिंह राणा होंगे दिल्ली में अकादमी के उपाध्यक्ष. दिल्ली में रहते हैं करीब 30 लाख उत्तराखंडी प्रवासी. अब दिल्ली में भी मिल पाएगा, गढ़वाली कुमाउनी और जौनसारी भाषाओं को सम्मान और प्रोत्साहन.“
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