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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 02

कुमाऊँनी कवि शेरदा अनपढ़ का जीवन परिचय-Biography Kumauni Kavi Sherda Anpadh ka Jivan Parichay, Sherda ki kavita

कुमाऊँनी भाषा के कवि शेर सिंह बिष्ट, शेरदा ‘अनपढ़’

सन १९६३ ई. में शेरदा के पेट में अल्सर हो गया और वह मेडिकल ग्राउंड में रिटायर होकर घर आ गये।  लेकिन अल्मोड़ा में या गांव में शेरदा का ऐसा कोई नहीं था जिससे कोई बातचीत हो सके।  शेरदा के अनुसार उनने गांव वालों से पूछा कि आप किसी टीचर-मास्टर को या फिर ऐसी जगह जानते हैं, जहां कोई पढ़ा-लिखा आदमी मिल जाये।   किसी ने पता बताया, वहां चले गये अपनी दोनॊं किताबें दिखायीं, तो उन्होंने कहा हमारे कॉलेज में एक चारु चंद्र पांडे गुरु जी हैं।  वो कविता भी करते हैं पहाड़ी में आप उनसे मिलो वो जरुर कुछ कर सकते हैं।  फ़िर शेरदा चारु चंद्र पांडे जीसे मिले तो वह शेरदा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि मैं आपको ब्रजेंद्र लाल साह से मिलाता हूं, कविता के बड़े जानकार हैं।  पहाड़ में सांस्कृतिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए एक सेंटर खुलने जा रहा है और वह उसके डायरेक्टर बनने वाले हैं।

इसके बाद शेरदा ब्रजेंद्र लाल साह जी से मिले उनको अपनी किताबें दिखायी और कविता सुनायी।  ब्रजेंद्र लाल साह भी प्रभावित हुये और उन्होंने कहा कि नैनीताल में सेंटर खुल गया है। तुम वहां एप्लाई कर दो, तुम्हारे जैसे कवि-कलाकार की जरूरत है।   शेरदा का हौंसला बढ़ा और उन्होने एप्लाई कर  दिया और कॉल लैटर  भी आ गया।   शेरदा नैनीताल इंटरव्यू  को गये, वहां इंटरव्यू लेने कुछ लोग दिल्ली से आये थे, कुछ गढ़वाल-कुमाऊं के लोग थे। शेरदा के साथ-साथ कुल पचास लोग छांटे गये, सेंटर का नाम था ‘गीत एवं नाट्य प्रभाग’।   अब शेरदा का एक नया सफर शुरू हो गया था, नैनीताल के अयारपाटा में दफ्तर खुला।  सबने काम शुरू कर दिया, गीत बनने लगे,  कंपोज होने लगे।

शेरदा के बड़े अधिकारी उनसे बहुत खुश थे और उनके बारे में कहते थे कि ये पहाड़ का रवीन्द्रनाथ टैगोर है।  जब शेरदा सुनते तो उनको लगता कि अंदर कुछ न कुछ तो है और दुगुने उत्साह से शेरदा ने तब कुछ कवितायें मंच के लिए लिखीं तो कुछ साहित्य के लिए। इस तरह गीत एवं नाटक प्रभाग में अपनी सेवा के दौरान शेरदा विभिन्न स्थानों में प्रस्तुति देने लगे।  उनकी लिखी कविताऎं और गीत आम लोगॊ में प्रचलित और प्रचारित होने लगे।  इस दौरान शेरदा ने सैकड़ों कविताऎं और गीत लिखे, जो गीत एवं नाटक प्रभाग के कार्यक्रमों में प्रस्तुत किये जाते।

यहां से ही शेरदा का संपर्क आकाशवाणी लखनऊ से हो गया और वहां पर भी शेरदा के गीत प्रसारित होने लगे।  फ़िर शेरदा को आकाशवाणी लखनऊ में कवि सम्मेलन में भी बुलाया जाने लगा। वहां पर जब शेरदा ने अपनी कविताऎं प्रस्तुत की तो कविता सुनकर सब बहुत प्रभावित हुए।  सबने कहा-अनपढ़ शेरदा नहीं, हम लोग हैं, इतनी अच्छी कविता कर रहे हैं।  आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित कुछ गीत जैसे-
"ओ परुवा बौज्य़ु ............." और "बखता तेरी बलै ल्युल............" श्रोताओं में काफ़ी लोकप्रिय हुये और शेरदा को एक नयी पहचान मिली।  इससे शेरदा का हौंसला और बढ़ता गया और उन्होने अपनी रचनाओं को पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित करवाना शुरु कर दिया।

बड़े मंचों से शेरदा को कोई मतलब नहीं रहा वह जीवन पर्यंत बस खास महफिलों और अवसरों पर अपनी रचनाओं को गाते सुनाते रहे।  गीत एवं नाटक प्रभाग में नैनीताल से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद शेरदा अधिकतर हल्द्वानी में रहे।  स्वास्थ्य ठीक ना रहने के बावजूद वह छोटे मंचों और महफ़िलों में अपनी रचनाऎं प्रस्तुत करते रहते थे।  छोटे मंचो पर प्रस्तुति के दौरान श्रोताओं से आमने सामने का संवाद भी शेरदा की एक विशेषता थी।  २० मई २०१२ को शेरदा अपने अनपढ़ ज्ञान का भंडार हमारे बीच छोड़कर इस संसार से विदा हो गये।  भले ही शेरदा आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका लिखा हुआ "अनपढ़ साहित्य" कईयों को पी.एच.डी. करा चुका है और वह हमेशा शेरदा को अमर रखेगा।

शेरदा की मुख्य रचनाऎं निम्न हैं:-
१.   ये कहानी है नेफा और लद्दाख की
२.   दिदि-बैणी
३.   मेरि लटि-पटि
४.   जाँठिक घुँङुर
५.   कठौती में गंगा
६.   हँसणै बहार
७.   हमार मै-बाप,
८.   फचैक
९.   शेरदा समग्र २००८ में प्रकाशित ये किताब शेरदा की कुमाउँनी कविताओं का संग्रह है।
१०. शेरदा संचयन - यह किताब 2011 में प्रो० शेर सिंह बिष्ट जी के संपादन में प्रकाशित हुई।

(पिछला भाग-१) शेरदा के कवि जीवन और रचनाओं के बारे में हम आगे और पढ़ेंगे..............(कृमश: भाग-३)
शेरदा से सम्बंधित कुछ मुख्य लिंक्स
यूट्यूब पर शेरदा की कविता

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