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विभाण्डेश्वर महादेव

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कुमाऊँ के तीर्थ - विभाण्डेश्वर महादेव

अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जगत प्रसिध्द विभाण्डेश्वर महादेव मंदिर। नागार्जुन पर्वत की तलहटी पर पतित पावनी सुरभि और नंदनी का पावन संगम है। इसी संगम के सामने विद्यमान है विभाण्डेश्वर शिव मंदिर। यहां की गई शिव पूजा सर्वोत्तम है। स्कंध पुराण के मानस खंड में ऐसा वर्णन है...
"नागार्जुनेति यो ख्यातो मया ते पर्वतोत्तमः। यस्य कुक्षो महादेवो दक्षिणे द्विजसत्तमा। विभाण्डेश इति ख्यातो देवगंधर्वपूजितो। यं संपूज्य महाभागा नान्यकृत्यं हि निश्चियात्। " विभाण्डेश्वर महादेव की पूजा करने के बाद कुछ करना शेष नहीं रहता।

मानस खंड के अनुसार शिवजी विवाहोपरांत राजा हिमालय के पास आते हैं। हिमालय ने अर्घ पाद्य सहित भगवान महादेव के पूजा अर्चना की। शिव प्रसन्न हुए। राजा आने का कारण पूछा। शिवजी ने सोने की इच्छा प्रकट की। शिवजी के शयन के लिए उन्नत हिम शिखरों पर शिवजी ने सिर रखा। कमर नीलगिरी बागेश्वर में पैर दारूकानन जागेश्वर में रखे, दाईं भुजा नागार्जुन में और बाईं भुजा भुवनेश्वर में रखकर शिव सोए। चूंकि शिवजी की वरदाई दाईं भुजा नागार्जुन में स्थित है इसलिए विभाण्डेश्वर का विशेश महत्व है। व्यासजी ऋषियों से विभाण्डेश्वर को सबसे अधिक पुण्यदायी बताते हुए कह रहे हैं कि काशी में दशहजार साल तक निवास करने का जो फल है वह फल केवल विभाण्डेश्वर के दर्शनों से प्राप्त हो जाता है।

व्यास जी कहते हैं.."मा स्मरन्त्विह विश्वेशं मा काशी शिव वल्लभाम्।स्मरंत्वेकं महादेवं विभाण्डेशं तपोधना। दशवर्षसहस्राणि उषित्वा काशिमंडले। विश्वेशपूजनाद् विप्रा यत्पुण्यं समवाप्यते। तत् पुण्यं मुनि शार्दूला विभाण्डेशस्य दर्शनात्। सर्वक्षेत्रोत्तम् क्षेत्रं मयैयत् समुदाहृतम्।"

ब्रह्माजी से नारद व्यास आदि ऋषियों ने पूछा " हे लोकनाथ पापकारी, दुरात्मा, माता पिता द्रोही तथा छल प्रपंची मनुष्यों की मुक्ति किस क्षेत्र में संभव है? "

ब्रह्माजी ने कहा " देव गंधर्व सेवित नागार्जुन पर्वत की कोख पर विभाण्डेश्वर महादेव का दर्शन पूजन से महापातकी भी पापमुक्त हो जाते हैं। विभाण्डेश महादेव की पूजा राजसूय यग्य के समान फलदायी है। नागार्जुन पर्वत से निकलने वाली सुरभि और द्रोण पर्वत से निकल कर यहां संगम बनाने वाली पावन नंदनी संगम पर स्नान करने के बाद यहां किया गया शिवार्चन समस्त पापों का नाश करने वाला है। इसमें संदेह नहीं है। "

संदर्भ ग्रंथ मानसखंड

दुर्गा दत्त जोशी
दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा से साभार
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