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शेर सिंह बिष्ट, शेरदा अनपढ़ - कुमाऊँनी कवि 03

कुमाऊँनी कवि शेरदा अनपढ़ का जीवन - Kumauni Kavi Shera Anpadh ke jivan se sambandhit kavitaein, sherda ki kavita

कुमाऊँनी भाषा के कवि शेर सिंह बिष्ट, शेरदा ‘अनपढ़’


कुमाऊँनी भाषा के जाने-माने कवि शेर सिंह बिष्ट शेरदा ‘अनपढ़’ ने अपने जीवन के बारे में भी अपनी कविता के माध्यम से लिखा है।  शेरदा ने अपने बचपन के जीवन क विवरण खुद अपनी इस कविता में दिया जरा देखिये:- 
‘गुच्ची खेलनै बचपन बीतौ, अल्म्वाड़ गौं माल में, 
बुढ़ापा हल्द्वानी कटौ, जवानी नैनीताल में।
अब शरीर पंचर हैगौ, चिमड़ पड़ गयी गाल में,
शेरदा सवा शेर छि, फंस गौ बड़ुवांक जाल में।।

शेरदा ने गांव में अपनी पहली नौकरी के बारे में लिखा है कि गांव में वह क्या काम किया करते थे:-
पांच सालैकि उमर, गौं में नौकरि करण फैटूं,
काम छि, नान भौक डाल हलकूण’
उलै डाड़ नि मारछि, मै लै  डाड़ नि मारछि, 
द्विनौ कै है रौंछि, मन बहलुण।

शेरदा की जब बच्चा कम्पनी में आर्मी में पक्की सरकारी नौकरी लग गयी तो खुशी के माहौल में शेरदा के कवि हृदय से फ़िर एक कविता फूटी और वो अपने ईष्ट देव को धन्यवाद करते हुये लिखते हैं:- 
म्यर ग्वल-गंगनाथ, मैहूं दैण है पड़ी।
भान मांजणि हाथों में, रैफल ऐ पड़ी।

शेरदा ‘अनपढ़’ के जीवन का सफर सुनिये उनकी अपनी आवाज में जो शेरदा ने कुमाऊँ वाणी रेडिऒ कार्यक्रम को साक्षात्कार में बताया:-

शेरदा महात्मा गान्धी जी के भी बड़े प्रशंसक थे, उन्होने बापू पर कुमाऊनी में एक कविता लिखी जो कुछ इस प्रकार है:-
हुलर आओ बापू तुम माठू माठ,
आशा लागि रयूं मैं बाट-बाट।

मैंकणि तुमरि, नराई लागि रै,
चरख मैं ऐल, कताई लागि रै।
खद्दर ऊण की, बुणाई लागि रै,
गांधी टोपिनै की, सिंणाई लागि रै।।

मैंके लागिं प्यार तेरी ख्वारै चानि,
मैंकणि खैदेली, तेरी नाखैकि डानि।
मुख-मुख चैरूं छै, तू गिज ताणि,
कि भलि छाजिंछ, धोती नान-नानि॥

हुलर चड़ कसि जांछा, छन मार-मार॥
हुलर आओ, बापू तुम माठू-माठ।

शेरदा ने कई तरह की रचनाऎं की हैं पर व्यग्यात्मक रूप में पहाड़ी जनमानस की समस्याऒं को काव्य रूप में कविता और गीतों के माध्यम से प्रस्तुत करना शेरदा के पहचान है।  हमारे लोकतन्त्र के विभिन्न सदनों के सम्बन्ध मे शेरदा की कविता पर ध्यान दिलिएगा:-

कै हैंति कुनि सभा?

जां बात बात में, हात मारनि,
वै हैंति  कूनि, ग्राम सभा।

जां हर बात में, लात मारनि,
वै हैंति कूनि, विधान सभ।

जां एक कूँ , सब सुणनि,
वै हैंति कूनि, शोक सभा।

जां सब कूनी, और क्वे नई सुणन,
वै हैंति कूनि, लोक सभा। 

शेरदा ‘अनपढ़’ के कवि जीवन और रचनाओं के बारे में हम आगे के भागों में भी पढ़ते और जानते रहेंगे। 

( पिछला भाग-२ ) ................................................................................................(कृमश: भाग-)


शेरदा से सम्बंधित कुछ मुख्य लिंक्स 
यूट्यूब पर शेरदा की कविता

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